भिलाई . संगीत तेज आवाज में बजे या धीमे, इनके लिए मायने नहीं रखता। girls college durg हाथों का डायरेक्शन और आंखों का इशारा ही महत्वपूर्ण हैं। यें न सुन सकती हैं न बोल फिर भी भरतनाट्यम् में पकड़ ऐसी की हर कोई हैरान हो जाए।
संगीत को महसूस कर उस पर थिरकते कदम यह बताने के लिए भी काफी है कि इनमें खास है। हम बात कर रहे हैं शासकीय कन्या महाविद्यालय, दुर्ग के नृत्यकला विभाग में पढ़ रही मूकबधिर छात्राओं की, जिन्होंने अपनी कमियों की परवाह न करते हुए साबित किया है कि कुछ भी नामुमकिन नहीं।
कक्षा की सामान्य छात्राओं के साथ ही अपनी तालीम हासिल कर रहीं ये छात्राएं खुद को कभी दूसरों से अलग नहीं पाती। स्पेशल छात्राओं को सामान्य के बीच तालीम देने का क्रम कॉलेज ने 2010 से शुरू किया है, जो अब भी ब-दस्तूर जारी है।
ये स्पेशल छात्राएं सीख रही हैं नृत्य
- केसर बानो (बीए भाग-2)
- फरहीन बानो (बीए भाग-1)
- गरिमा सक्सेना (बीए भाग-1)
- गोल्डी चंद्राकर (बीए भाग-1)
- राखी सिंह (बीए भाग-2)
- पूनम सोनी (बीए भाग-3)
रंगोली, चित्रकला में भी इनका जवाब नहीं
Girls college durg की नृत्य विभाग की प्रोफेसर डॉ. ऋचा ठाकुर बताती हैं कि नृत्य जैसे ताल एवं स्वर से परिपूर्ण विषय को सीखना एवं सिखाना बहुत कठिन है। उनका कहना है कि उनके अध्यापन के अनुभव में यह बहुत चुनौतीपूर्ण कार्य था। शुरूआत में नृत्य सिखाने से पहले उन्हें भी मूकभाषा संकेत सीखना पड़ा तभी उनसे सीधे संवाद स्थापित किया जा सकता था।
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इसमें विशेष ध्यान यह देना होता है कि उन्हें अपनी दिव्यांगता का अहसास न हो। यही वजह है कि उन्हें सामान्य छात्राओं के साथ ही नृत्य सिखाया जाता है। इसी तरह ये छात्राएं हर विद्या में पारंगत है। चित्रकला, रंगोली, मेंहदी, पाककला सभी स्पर्धाओं में हिस्सा लेकर पुरस्कृत हो रही हैं।
केंद्र सरकार से मिला है सम्मान
बुलंद हौसलों की मिसाल कॉलेज में यूं तो दर्जनों है, लेकिन बीए-१ में एक छात्र ऐसी भी है, जिसने डाउन सिंड्रोम जैसी गंभीर बीमारी से लड़ते हुए केंद्रीय स्तर की प्रतियोगिता में नाम रौशन किया है। भारत सरकार की ओर से सम्मानित भी किया जा चुका है। कॉलेज की छात्रा सुदीप्ता विश्वास ने तो विश्वविद्यालयीन युवा उत्सव में प्रथम स्थान हासिल किया है।
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उत्साह और लगन में कोई कमी नहीं
कॉलेज के प्राचार्य डॉ. सुशील चन्द्र तिवारी ने बताया कि मूकबधिर छात्राएं बड़े उत्साह एवं लगन से सीखती है। कॉलेज के हर आयोजन में ये आगे बढक़र भाग लेती. ये छात्राएं सांकेतिक भाषा समझती हैं। विशेषज्ञों की माने तो पालक यदि सांकेतिक भाषा का इस्तेमाल बचपन से करेंगे तो बच्चे धीरे-धीरे चिन्हों के सहारे भाषाएं अच्छे से सीखा सकते हैं। अगर शुरू से बेहतर कम्यूनिकेशन हो तो बधिर बच्चे आगे चलकर डॉक्टर, इंजीनियर सबकुछ बन सकते है।
काबिल खिलाड़ी भी
कॉलेज की स्पेशल छात्रा फरहीन बानो और केसर बानो ने ढेरों पुरस्कार जीते है। नृत्य के आलावा ये छात्राएं चित्रकला में भी अव्वल है।
केसर बानो ने तो बॉस्केट बाल एवं डिस्क थ्रो में राष्ट्रीय स्तर पर खेला है। आशिया ने ज्वेलरी मेकिंग की राष्ट्रीय स्पर्धा जयपुर में मेडल जीता है। फरीदा बानो ने कम्प्यूटर प्रोग्रामिंग, कुकिंग एवं रंगोली में खूब ईनाम अपने नाम किए है।
इनसे लीजिए सीख
चित्रकला विभाग के प्रोफेसर डॉ. योगेन्द्र त्रिपाठी ने बताया कि इन छात्राओं की अभिव्यक्ति से यह साबित होता है कि शारीरिक अक्षमताओं के कारण कोई अक्षम नहीं हो जाता बल्कि उसके अंदर भी जीवन की नई गाथा लिखने की क्षमता होती है।
समाज को चाहिए की वह ऐसे व्यक्तियों को प्यार से अपनाएं और उसे अपनी मुख्यधारा में शामिल करे। ऐसे व्यक्तियों के अधिकारों की रक्षा के लिए समाज, सरकार व परिवार का बहुत कुछ करना शेष है।